आत्म-आनंद में लिप्त होकर, मैं अपने रसीले होंठों को नाजुकता से सहलाती हूं, अपनी उत्सुक भगनासा को छेड़ती हूं। मेरी उंगलियां मेरी नम सिलवटों पर नृत्य करती हैं, भीतर एक उग्र इच्छा को प्रज्वलित करती हैं। हर स्पर्श मेरे अस्तित्व के माध्यम से परमानंद की लहरें भेजता है, जो आनंदमय रिहाई के चरमोत्कर्ष में समाप्त होता है।.